Monday, 11 April 2016

ऐ बेखबर मन..

ऐ बेखबर मन,
तु मेरे सच का पहरेदार है,
मेरे आंसुओं के पीछे की असहाय हंसी,
हंसी के पीछे का नीरस गम,
गम के पीछे की बेराग ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी के संकरे रास्तों के दरमियां,
दरिया से आती जैसे बयार है,
ऐ बेखबर मन,
तु मेरे सच का पहरेदार है,

कभी बेमतलब ही हंसना,
कभी बेमतलब ही रोना,
फिर आंसुओं को अकेले में छलकाना,
मन को अकेले में बहलाना,
मतलब से भरी इस दुनिया से,
बेमतलब लड़ना बेकार है,
ऐ बेखबर मन,
तु मेरे सच का पहरेदार है,

कभी किसी की जुलफों में क्यों सोया,
कभी किसी के दामन में क्यों खोया,
क्यों कभी हाथ ना थामा किसी का,
क्यों कभी हाथ ना छोड़ा किसी का,
जिंदगी की लम्बी दास्ताँ में, 
क़िस्से तो बस हिस्से हैं,
जीवन की पूरी कहानी पर,
बस तेरा अधिकार है,
ऐ बेखबर मन,
तु मेरे सच का पहरेदार है...